यक-ब-यक शोरिश-ए-फ़ुग़ाँ की तरह फ़स्ल-ए-गुल आई इम्तिहाँ की तरह सेहन-ए-गुलशन में बहर-ए-मुश्ताक़ाँ हर रविश खिंच गई कमाँ की तरह फिर लहू से हर एक कासा-ए-दाग़ पुर हुआ जाम-ए-अर्ग़वाँ की तरह याद आया जुनून-ए-गुम-गश्ता बे-तलब क़र्ज़-ए-दोस्ताँ की तरह जाने किस पर हो मेहरबाँ क़ातिल बे-सबब मर्ग-ए-ना-गहाँ की तरह हर सदा पर लगे हैं कान यहाँ दिल सँभाले रहो ज़बाँ की तरह