यकसाँ कभी किसी की न गुज़री ज़माने में यादश-ब-ख़ैर बैठे थे कल आशियाने में सदमे दिए तो सब्र की दौलत भी देगा वो किस चीज़ की कमी है सख़ी के ख़ज़ाने में ग़ुर्बत की मौत भी सबब-ए-ज़िक्र-ए-ख़ैर है गर हम नहीं तो नाम रहेगा ज़माने में दम भर में अब मरीज़ का क़िस्सा तमाम है क्यूँकर कहूँ ये रात कटेगी फ़साने में साक़ी मैं देखता हूँ ज़मीं आसमाँ का फ़र्क़ अर्श-ए-बरीं में और तिरे आस्ताने में दीवारें फाँद-फाँद के दीवाने चल बसे ख़ाक उड़ रही है चार तरफ़ क़ैद-ख़ाने में सय्याद इस असीरी पे सौ जाँ से मैं फ़िदा दिल-बस्तगी क़फ़स की कहाँ आशियाने में हम ऐसे बद-नसीब कि अब तक न मर गए आँखों के आगे आग लगी आशियाने में दीवाने बन के उन के गले से लिपट भी जाओ काम अपना कर लो 'यास' बहाने-बहाने में