यारो किसी क़ातिल से कभी प्यार न माँगो अपने ही गले के लिए तलवार न माँगो गिर जाओगे तुम अपने मसीहा की नज़र से मर कर भी इलाज-ए-दिल-ए-बीमार न माँगो खुल जाएगा इस तरह निगाहों का भरम भी काँटों से कभी फूल की महकार न माँगो सच बात पे मिलता है सदा ज़हर का पियाला जीना है तो फिर जीने का इज़हार न माँगो उस चीज़ का क्या ज़िक्र जो मुमकिन ही नहीं है सहरा में कभी साया-ए-दीवार न माँगो