यास है हसरत है ग़म है और शब-ए-दीजूर है By Ghazal << इश्क़ की शो'ला-मिज़ाज... नज़र आया न कोई भी इधर देख... >> यास है हसरत है ग़म है और शब-ए-दीजूर है इतने साथी हैं मगर तन्हा दिल-ए-रंजूर है तेरा जाना था कि ग़म-ख़ाने पे वहशत छा गई मैं ये समझा था मिरे घर से बयाबाँ दूर है शब की ख़ामोशी में है तेरा तसव्वुर तेरी याद हाए क्या सामान-ए-तस्कीन-ए-दिल-ए-रंजूर है Share on: