ये आलम शौक़ का देखा न जाए वो बुत है या ख़ुदा देखा न जाए ये किन नज़रों से तू ने आज देखा कि तेरा देखना देखा न जाए हमेशा के लिए मुझ से बिछड़ जा ये मंज़र बार-हा देखा न जाए ग़लत है जो सुना पर आज़मा कर तुझे ऐ बेवफ़ा देखा न जाए ये महरूमी नहीं पास-ए-वफ़ा है कोई तेरे सिवा देखा न जाए यही तो आश्ना बनते हैं आख़िर कोई ना-आश्ना देखा न जाए ये मेरे साथ कैसी रौशनी है कि मुझ से रास्ता देखा न जाए 'फ़राज़' अपने सिवा है कौन तेरा तुझे तुझ से जुदा देखा न जाए