ये अब खुला कि कोई भी मंज़र मिरा न था मैं जिस में रह रहा था वही घर मिरा न था मैं जिस को एक उम्र सँभाले फिरा किया मिट्टी बता रही है वो पैकर मिरा न था मौज-ए-हवा-ए-शहर-ए-मुक़द्दर जवाब दे दरिया मिरे न थे कि समुंदर मिरा न था फिर भी तो संगसार किया जा रहा हूँ मैं कहते हैं नाम तक सर-ए-महज़र मिरा न था सब लोग अपने अपने क़बीलों के साथ थे इक मैं ही था कि कोई भी लश्कर मिरा न था