ये अच्छा है कि ये अच्छा नहीं है जो उस से अब कोई रिश्ता नहीं है वो है वैसा की अब वैसा नहीं है उसे इक उम्र से देखा नहीं है रिहा हो कर क़फ़स से क्या करेगा परिंदे ने कभी सोचा नहीं है न पूछो वक़्त की रफ़्तार हम से गुज़रता है मगर दिखता नहीं है मुझे मक़्तल में रोका है ये कह कर तुम्हें अब जान का ख़तरा नहीं है सभी जन्नत में जाना चाहते हैं ये दोज़ख़ के लिए अच्छा नहीं है ख़ुशी क्यूँ फिर रही है मुँह फुलाए मिरा उस से कोई झगड़ा नहीं है उसे पत्थर के हो जाने का डर था पलट के इस लिए देखा नहीं है ये कू-ए-इश्क़ है इस में से 'आसिफ़' निकलने का कोई रास्ता नहीं है