ये अलग बात कि हम सा नहीं प्यासा कोई फिर भी दरिया से तअ'ल्लुक़ नहीं रक्खा कोई मेरे मकतब को धमाके से उड़ाया गया है अब कि हाथों में किताबें हैं न बस्ता कोई जाने किस ओर गया क़ाफ़िला उम्मीदों का दिल के सहरा में नहीं आस का ख़ेमा कोई किस अजब धुन में यहाँ उम्र गँवाई हम ने क़र्ज़ मिट्टी का उतारा न ही अपना कोई प्यास के हाथों मिरा क़त्ल हुआ है 'नोमान' दोस्त दरिया थे मगर पास न आया कोई