ये अमल मौजा-ए-अन्फ़ास का धोका ही न हो ज़िंदगी इशरत-ए-एहसास का धोका ही न हो जैसे इक ख़्वाब हुआ अहद-ए-गुज़िश्ता का सबात दम-ए-आइंदा मिरी आस का धोका ही न हो ये नगीं भी न हो बस मोजज़ा-ए-तार-ए-नज़र ये हुनर शीशा-ओ-अल्मास का धोका ही न हो मिरे तख़्ईल के ही अक्स न हों सब्ज़ा-ओ-गुल दहर औहाम का वसवास का धोका ही न हो हर यक़ीं में जो निकलता है गुमाँ का पहलू ये मिरी अक़्ल के ख़न्नास का धोका ही न हो