ये और बात है कुछ ग़म जहाँ जहाँ न हुआ हमारे हाल का चर्चा कहाँ कहाँ न हुआ हुए हो जाँ-ब-लब अब होगा क्या तमन्ना का जहाँ पे ढूँडते हो दिल अगर वहाँ न हुआ मिले जो जुर्म-ए-वफ़ा की सज़ा यहीं पे मिले हिसाब अपना कहाँ होगा जो यहाँ न हुआ नहीं हैं आँसू ही कोई ज़बाँ मिरे दिल की है ऐसा अश्क भी आँखों से जो रवाँ न हुआ हुआ क्या जानिए दिल को मिरे शब-ए-तारीक हज़ारों दाग़ मगर एक भी अयाँ न हुआ चढ़ाया दार पे और कर दिया मुझे ज़िंदा ये और कुछ हुआ हसरत है इम्तिहाँ न हुआ सुना रहे हो यूँ वहशत में हाल-ए-ग़म जो 'अज़्म' हुआ वो नाला-ए-दिल दर्द का बयाँ न हुआ