ये बात क्यूँ नहीं लगती बहुत अजीब तुम्हें कोई किसी को पुकारे जवाब तक न मिले बस इक ख़लिश का मुक़द्दर सँवारने के लिए सवाल क्या क्या निखारे जवाब तक न मिले पस-ए-नविश्ता-ए-तक़दीर माजरा क्या था बुझाए किस ने सितारे जवाब तक न मिले अगरचे हम ने सदाएँ कई सुनी थीं मगर पुकारने पे हमारे जवाब तक न मिले न हम थे ग़ार-नशीं और न तूर वाले थे किसी को जब भी पुकारे जवाब तक न मिले