ये बात फिर मुझे सूरज बताने आया है अज़ल से मेरे तआ'क़ुब में मेरा साया है बुलंद होती चली जा रही हैं दीवारें असीर-ए-दर है वो जिस ने मुझे बुलाया है मैं ला-ज़वाल था मिट मिट के फिर उभरता रहा गँवा गँवा के मुझे ज़िंदगी ने पाया है वो जिस के नैन हैं गहरे समुंदरों जैसे वो अपनी ज़ात में मुझ को डुबोने आया है मिली है उस को भी शोहरत 'क़तील' मेरी तरह जब उस ने अपने लबों पर मुझे सजाया है