ये बाजे ये गाजे ये मेले ये ठेले ये सब जीते जी के हैं सारे झमेले ज़बाँ पे मिरी क़ुफ़्ल ही लग गया जो मिले भी कहीं वो अकेले-दुकेले यक़ीनन वो इंसान बार-ए-ज़मीं है फली फोड़ कर जो न दे दुख न झेले वो मिस्कीन सूरत नज़र भोली-भाली मगर बात ऐसी कि बस चुटकी ले ले वो बुत आज बे-तरह गुमसुम बना है न कुछ मुँह से बोले न कुछ सर से खेले तुम्हारी मोहब्बत में ऐ जान हम ने सदा दुख ही झेले हैं पापड़ ही बेले गिरह दो गिरह की लंगोटी में हम सब रहे मस्त-ओ-बे-ख़ुद सदा फाग खेले नचाया है वो नाच तिगनी का तुम ने कि इंसान से बन गए हम भुँडेले नहीं शा'इरी में हुआ कोई हम-सर न ऐरे न ग़ैरे न मिल्टन न शैले तुम्हारी तलव्वुन-मिज़ाजी के सदक़े गहे शहद हो गाह कड़वे करेले ज़रीफ़' आप का रंग है सब से चोखा ज़राफ़त में हैं आप 'अकबर' के चेले