ये बातों ही बातों में बातें बदलना कोई तुम से सीखे ये आँखें बदलना हम आसेब के डर से घर क्यूँ बदल लें परिंदों पे जचता है शाख़ें बदलना कुछ अपना भी कह लो यूँ कब तक चलेगा रदीफ़ें उचकना ज़मीनें बदलना वही ग़म से आरी हैं कार-ए-जहाँ में जिन्हें ख़ूब आता है राहें बदलना ये जीना भी शतरंज ही ने सिखाया कि चालों के लगने पे चालें बदलना रिवायत रही है यही फ़ी ज़माना नज़रिये बदलना किताबें बदलना ये तुझ से ही सीखा है जान-ए-तमन्ना ज़रा सी उदासी में बाँहें बदलना