ये भी नहीं उम्मीद कि बेदाद करोगे तुम ऐसे कहाँ हो कि मुझे याद करोगे क्या मेरे लिए ग़ैर को नाशाद करोगे तुम यूँ भी सितम ढाओगे बेदाद करोगे दो-चार घड़ी और है दुनिया में बसेरा अब ज़ुल्म करोगे अगर आज़ाद करोगे ये हिज्र न जाने मुझे क्या वक़्त दिखाए और तुम किसी बद-बख़्त को क्यों याद करोगे तक़दीर के मारे को सताना नहीं अच्छा बर्बाद को तुम और क्या बर्बाद करोगे मैं ख़ूब समझता हूँ तुम्हारी ये शरारत नाशाद करोगे तुम अगर शाद करोगे तुम जा तो रहे हो मगर इतना तो बता दो तक़दीर के मारे को कभी याद करोगे तासीर से ख़ाली नहीं 'बिस्मिल' का तड़पना ये याद रहे तुम को कि तुम याद करोगे