ये दास्तान-ए-ग़म-ए-दिल कहाँ कही जाए यहाँ तो खुल के कोई बात भी न की जाए तुम्हारे हाथ सही फ़ैसला मगर फिर भी ज़रा असीर की रूदाद तो सुनी जाए ये रात दिन का तड़पना भी क्या क़यामत है जो तुम नहीं तो तुम्हारा ख़याल भी जाए अब इस से बढ़ के भला और क्या सितम होगा ज़बान खुल न सके आँख देखती जाए ये चाक चाक गरेबाँ नहीं है दीवाने जिसे बस एक छलकती नज़र ही सी जाए कोई सबील कि ये सेहर-ए-जाँ-गुसिल टूटे कोई इलाज कि ये दौर-ए-बेबसी जाए