ये दिल आवेज़ी-ए-हयात न हो अगर आहंग-ए-हादसात न हो तेरी नाराज़गी क़ुबूल मगर ये भी क्या भूल कर भी बात न हो ज़ीस्त में वो घड़ी न आए कि जब हात में मेरे तेरा हात न हो हँसने वाले रुला न औरों को सुब्ह तेरी किसी की रात न हो इश्क़ भी काम की है चीज़ अगर यही बस दिल की काएनात न हो कौन उस की जफ़ा की लाए ताब गाहे गाहे जो इल्तिफ़ात न हो रिंद कुछ कर रहे हैं सरगोशी ज़िक्र-ए-'मुल्ला' से ख़ुश-सिफ़ात न हो