ये दिल में वसवसा क्या पल रहा है तिरा मिलना भी मुझ को खल रहा है जिसे मैं ने किया था बे-ख़ुदी में जबीं पर अब वो सज्दा जल रहा है मुझे मत दो मुबारकबाद-ए-हस्ती किसी का है ये साया चल रहा है सर-ए-सहरा सदा दिल के शजर से बरसता दूर इक बादल रहा है फ़साद-ए-लग़्ज़िश-ए-तख़लीक़-ए-आदम अभी तक हाथ यज़्दाँ मल रहा है दिलों की आग क्या काफ़ी नहीं है जहन्नम बे-ज़रूरत जल रहा है