ये इज़्न-ए-जस्त फ़क़त इक बहाना होता है कहाँ ठहरते हैं वो जिन को जाना होता है हमारे सर पे मोहब्बत का इतना बोझ न डाल हमें मआश का दुख भी उठाना होता है जहाँ पे सोख़्ता जज़्बात रखे जाते हैं हर एक दिल में कहीं सर्द-ख़ाना होता है हमारे तज़्किरे सदियों लबों पे रहते हैं हमारे दिन नहीं होते ज़माना होता है तू मो'तरिज़ न हो इतना मलाल-ए-बेश-बहा कभी कभी तो हमें मुस्कुराना होता है उड़ा ले जाती है मुझ को वहाँ समय की हवा जहाँ कहीं भी मिरा आब-ओ-दाना होता है किसी को लाती है राहों में कच्चे घर की ख़लिश कोई सफ़र पे ख़ुशी से रवाना होता है खुले-किवाड़ अलामत हैं आस की लेकिन हवा के रुख़ पे दिया भी जलाना होता है हमारे हाल पे जैसी गुज़र रही हो 'हसन' हमें रवय्या भी वैसा बनाना होता है