ये फ़ितरत की हक़ीक़त है जो झुटलाई नहीं जाती है क्या शय पुतला-ए-ख़ाकी में जो पाई नहीं जाती हुज़ूर-ए-हुस्न में ये इश्क़ की ख़ुद्दारियाँ नादाँ तमन्ना अर्ज़ की जाती है फ़रमाई नहीं जाती मुझे ऐ दिल उसी कूचे उसी महफ़िल में फिर ले चल तबीअ'त मय-कदे में मुझ से बहलाई नहीं जाती मिरा रोना मिरे बस में नहीं है नासेह-ए-मुश्फ़िक़ घटा ये ख़ुद बरस जाती है बरसाई नहीं जाती ज़रा सा गुफ़्तुगू में मोड़ हो तो चौंक उठती हूँ मिरी दीवानगी से इतनी दानाई नहीं जाती न वो दीवानगी है अब न वो सहरा न वो काँटे मगर तलवों से शान-ए-आबला-पाई नहीं जाती उन आँखों से ज़िया-ए-मेहर की उम्मीद ऐ 'राजे' जिन आँखों में मोहब्बत की रमक़ पाई नहीं जाती