ये फ़क़त शोरिश-ए-हवा तो नहीं कोई मुझ को पुकारता तो नहीं बोल ऐ अख़्तर-ए-ग़ुनूदा-ए-सुब्ह कोई रातों को जागता तो नहीं सुन कि ये मद्द-ओ-जज़्र-ए-साहिल-ए-बहर माजराओं का माजरा तो नहीं ज़ेहन पर एक खुरदुरी सी लकीर कंखजूरे का रास्ता तो नहीं रेत पर चढ़ रही है रेत की तह बाबुल ओ मिस्र ओ नैनवा तो नहीं नोक-ए-हर-ख़ार-ओ-ख़स है ख़ूँ-आलूद रूह-ए-सहरा बरहना-पा तो नहीं ऐ मिरी जान-ए-मुब्तला के सुकूँ तू कोई जान-ए-मुब्तला तो नहीं तेरे जिस्म-ए-हसीं में ख़्वाबीदा बाग़-ए-जन्नत का अज़दहा तो नहीं