ये फुर्क़तों में लम्हा-ए-विसाल कैसे आ गया मोहब्बतों में फिर नया उबाल कैसे आ गया जिसे जहाँ के मशग़लों में अपना होश भी न था अचानक आज उसे मिरा ख़याल कैसे आ गया अभी तलक तो मेरे सारे ज़ख़्म थे हरे-भरे यकायक उन को कार-ए-इंदिमाल कैसे आ गया जुदाई का बस एक पल गिराँ था ज़िंदगी पे जब तो दरमियान बहर-ए-माह-ओ-साल कैसे आ गया अभी तलक थीं वक़्त की तनाबें उस के हाथ में अदम फ़राग़तों का फिर सवाल कैसे आ गया मिरे ज़रा से दर्द पर तड़प थी जिस की दीदनी उसे सितमगरी का ये कमाल कैसे आ गया 'नदीम' अपनी चाहतों पे नाज़ था तुम्हें बहुत तो फिर तुम्हारे इश्क़ पर ज़वाल कैसे आ गया