ये गिला दिल से तो हरगिज़ नहीं जाना साहब सब ने जाना हमें पर तुम ने न जाना साहब इन बयानों से ग़रज़ हम ने ये जाना साहब आप को ख़ून हमारा है बहाना साहब छोड़ कर आप के कूचे को फिरूँ सहरा में सो तो मजनूँ सा नहीं हूँ मैं दिवाना साहब याद थे हम को जवानी में तो सौ मक्र-ओ-फ़रेब इक करिश्मा था तुम्हें दाम में लाना साहब अब जो बूढे हैं तो अब भी हमें शैतान 'नज़ीर' हँस के कहता है अजी आइए नाना-साहब