ये हिजरतों के तमाशे, ये क़र्ज़ रिश्तों के मैं ख़ुद को जोड़ते रहने में टूट जाता हूँ मिरी अना मुझे हर बार रोक लेती है बस एक बात है कहने में टूट जाता हूँ ज़मीं का कर्ब, लहू, दर्द, गर्दिश-ए-पैहम इक इज़दिहाम है, सहने में टूट जाता हूँ मैं इक नदी हूँ मिरी ज़ात इक समुंदर है मैं अपनी ख़ाक पे बहने में टूट जाता हूँ