ये इश्क़ अजब लम्हा-ए-तौक़ीर है जानाँ ख़ुद मेरा ख़ुदा उस की ही तफ़्सीर है जानाँ जो नाम हथेली की लकीरों में नहीं था क्यूँ आज तलक दिल पे वो तहरीर है जानाँ उस ख़्वाब की ता'बीर तो मुमकिन ही नहीं थी आँखों में मगर उस की ही तासीर है जानाँ माना कि तिरे हाथों में हैं फूल अभी तक लेकिन तिरे पैरों में जो ज़ंजीर है जानाँ क्या जानिए किस रोज़ बिखर जाए कहीं भी इस आस की दिल में जो इक तनवीर है जानाँ ये रोग कहीं मुझ को ही मिस्मार न कर दे आ लौट कर आ तू ही तो इक्सीर है जानाँ तू हिज्र में डूबी हुई नय्या का किनारा जीवन की तिरे पास ही तदबीर है जानाँ ये ज़ख़्म जुदाई के कभी सिलने नहीं हैं तू जान ले अपनी यही तक़दीर है जानाँ उस आग के शो'लों में वो फूलों का तबस्सुम इक सज्दा-ए-बे-मिस्ल की तस्वीर है जानाँ अब दिन की तलब ही नहीं 'शाहीन' मुझे तो इक शाम ही अब तो मिरी जागीर है जानाँ