ये जिस्म-ओ-रूह का रिश्ता भी बोझ लगता है ख़ुद अपने आप का साया भी बोझ लगता है किसी को चाहते रहना भी बोझ लगता है किसी के हिज्र में रोना भी बोझ लगता है ये किस मक़ाम पे लाई हैं शोहरतें मुझ को कि अपने नाम का चर्चा भी बोझ लगता है तुम्हारे साथ ही गुज़री जो ज़िंदगी गुज़री तुम्हारे बा'द तो जीना भी बोझ लगता है किसी को मेरी उदासी उदास करती है किसी को मेरा ये हँसना भी बोझ लगता है अब आँखें इस तरह बोझल हुई हैं ऐ 'आसिम' कि कोई ख़्वाब सुहाना भी बोझ लगता है