ये जितने परिंदे उड़ानों में हैं By Ghazal << दिल की इमारत झूटे जज़्बों... हाँ अभी कुछ देर पहले शेर ... >> ये जितने परिंदे उड़ानों में हैं मिरे तीर के सब निशानों में हैं छतें आसमाँ छू रही हैं मगर बड़ी पट्टियाँ इन मकानों में हैं है भाई से भाई भी ना-आश्ना ये रस्में बड़े ख़ानदानों में हैं किताबें जिन्हें दे रहीं हैं सदा वो बच्चे अभी कार-ख़ानों में हैं Share on: