ये जो लौटी है चराग़ों को बुझा के पीछे हौसले और किसी के हैं हवा के पीछे छोड़ कर इतनी हसीं दुनिया को दीवाने लोग जाने क्या देखने जाते हैं क़ज़ा के पीछे ठीक है उस ने दुआ दी है तुम्हें भी लेकिन उस की ख़्वाहिश भी पता करना दुआ के पीछे काम इतनी तो चलो आ गई गोयाई मिरी उस की ख़ुश्बू है चली आई सदा के पीछे उस का पैग़ाम समझ पाए नहीं और नादाँ क़त्ल करने लगे लोगों को ख़ुदा के पीछे जब भी चाहूँ कि बढ़ूँ आगे तो माज़ी की ये मौज ले के जाती है मुझे और बहा के पीछे मुंतज़िर जिस के थे हम एक ज़माने से वो रौशनी लाई अँधेरों को छुपा के पीछे तुम को क्या इल्म मिटा कितने ही क़तरों का वजूद मुस्कुराती हुई इस एक घटा के पीछे लोग ये टूटे हुए यूँ भी अना रखते हैं क्यूँकि छुप जाता है बिखराव अना के पीछे