ये कैसा शहर है इल्ज़ाम से नहीं जाता मैं उस गली में किसी काम से नहीं जाता सुनो ये इश्क़ है सो जान ले के छोड़ेगा ये वो मरज़ है जो आराम से नहीं जाता उसी की याद सवेरे उजालती है मिरे उसी का ज़िक्र मिरी शाम से नहीं जाता अजब है प्यास किसी वस्ल से नहीं बुझती अजब जुनूँ है किसी नाम से नहीं जाता जो इब्तिदा से न जाए दिलों से डर 'आसिम' ये सोच लो कि वो अंजाम से नहीं जाता