ये कैसे लोग हैं जो राह में नाचार बैठे हैं बड़े नादाँ मुसाफ़िर हैं कि हिम्मत हार बैठे हैं अगर पहलू से वो उट्ठे तो दिल अपना न क्यों बैठे ग़रज़ मरने को हर सूरत से हम तय्यार बैठे हैं ज़माने ने न दी फ़ुर्सत जो हम ख़िदमत बजा लाते किसी ने कब हमें देखा कि हम बे-कार बैठे हैं किसे फ़ुर्सत ख़बर ले दर्द-मंदों की शब-ए-ग़म में हज़ारों बार उट्ठे हैं हज़ारों बार बैठे हैं कभी उट्ठे तो गर्म-ए-जुस्तुजू-ए-दोस्त में उट्ठे कभी बैठे तो महव-ए-आरज़ू-ए-यार बैठे हैं जुनून-ए-इश्क़ में सहरा-नवर्दी चाक-दामानी यही सब कर के गोया थक गए बे-कार बैठे हैं न राहों से शनासाई न रहबर से तआ'रुफ़ है हज़ारों जुस्तुजुएँ कर के हिम्मत हार बैठे हैं अजब ये रंग-ए-महफ़िल है कहें तो क्या कहें हमदम बहर-सूरत हम उस की बज़्म में बेज़ार बैठे हैं कभी 'दीवान' से देखा नहीं ख़ाली हो मय-ख़ाना जहाँ भी देखिए जा कर वहीं सरकार बैठे हैं