ये कैसी फ़स्ल-ए-बहार आई गुलों का सीना फ़िगार सा है हर इक नज़र है सुकूँ से आरी हर एक दिल बे-क़रार सा है चमन के जो पासबाँ हैं सोचें इसी को कहते हैं क्या गुलिस्ताँ शफ़क़ में शामिल है ग़म की सुर्ख़ी उफ़ुक़ पे ख़ून-ए-बहार सा है हरीफ़-ए-महकूमी-ओ-ग़ुलामी हुआ है मज़दूर का लहू फिर हर एक जानिब है तेज़ आँधी हर एक जानिब ग़ुबार सा है उरूज-ए-इल्म-ओ-हुनर की मंज़िल करेगा तय किस तरह मिरा दिल है पा-ए-इदराक में तज़लज़ुल शुऊ'र सीना फ़िगार सा है ख़याल की रहगुज़र तो देखो फ़रेब-ए-ज़ौक़-ए-नज़र तो देखो हर एक आहट पे चौंकता है वजूद-ए-दिल इंतिज़ार सा है किसी की आमद का सुन के मुज़्दा नसीम-ए-उम्मीद मुस्कुराई हर एक लम्हा है कैफ़-आवर निगाह-ओ-दिल में ख़ुमार सा है उदास तारीक ख़ल्वतों में है आज 'नाशाद' किस की आमद निगाह में बिजलियाँ फ़रोज़ाँ फ़ज़ाओं में इंतिशार सा है