ये कैसी तीरगी सी आ गई है चाँद तारों में ज़मीं-ज़ादे तमाशा देखने आए क़तारों में मिरे गाँव के कच्चे रास्ते में धूल उड़ती है तुम्हारे शहर के बच्चे पले हैं सब्ज़ा-ज़ारों में जटाएँ आँख पे डाले कोई बरगद ये कहता था मिरी शाख़ों के ग़ुंचे अब खिलेंगे किन बहारों में हमारे शहर में कुछ नौजवाँ ऐसे भी रहते हैं अमीर-ए-शहर से बच के जो सो जाते हैं ग़ारों में तुम्हारे इश्क़-पेशा लाल आँखें ज़र्द-रू ले कर धमालें डालने आए शिकस्ता दर मज़ारों मैं ये कह के चल पड़ी लैला पियादा-पा ही मंज़िल को कि डोली बन गई है मसअला संगीं कहारों में