ये करम दरवेश ने इक पल में मुझ पर कर दिया मुल्तफ़ित नज़रों से देखा और तवंगर कर दिया ख़ुश-मिज़ाजी तो मिरी फ़ितरत में शामिल थी मगर उस की बातों ने मुझे आपे से बाहर कर दिया अब तो हसरत से मुझे तकने लगीं ऊँचाइयाँ ख़ाकसारी ने मिरी मुझ को क़द-आवर कर दिया अब तो बस क़िस्मत में लिक्खी है बयाबानों की ख़ाक जुस्तुजू ने उस की मुझ को घर से बे-घर कर दिया ग़ैर का शिकवा गिला किस से करूँ अब मैं 'असर' मेरे अपनों ही ने मेरा जीना दूभर कर दिया