ये कार-ए-बे-समराँ मुझ से होने वाला नहीं मैं ज़िंदगी को बहुत देर ढोने वाला नहीं मैं सतह-ए-आब पे इक तैरता हुआ लाशा मुझे कोई भी समुंदर डुबोने वाला नहीं बड़े जतन से मिला है ये अपना आप मुझे मैं अब किसी के लिए ख़ुद को खोने वाला नहीं फ़सील-ए-शहर तिरा आख़िरी मुहाफ़िज़ हूँ ये शहर जागे न जागे मैं सोने वाला नहीं वो एक तू कि तिरे ग़म में इक जहाँ रोए वो एक मैं कि मिरा कोई रोने वाला नहीं किसी को फूल न दे पाऊँ मैं अगर 'शहबाज़' किसी की रूह में काँटे चुभोने वाला नहीं