ये करिश्मा भी क्या करिश्मा था मेरी बाँहों में चाँद ठहरा था धड़कनें गिन रहा था मैं उस की वो मिरे जिस्म-ओ-जाँ में उतरा था मेरी साँसों में थी महक उस की उस की साँसों में मैं महकता था ज़िंदगी अब मिरी मुकम्मल थी जिस को चाहा था अब वो मेरा था तिश्नगी बुझ गई थी अब मेरी मेहरबाँ आज मुझ पे दरिया था मैं अकेला नहीं था 'शाहजहाँ' आज मौसम भी कुछ दिवाना था