ये कौन सा मक़ाम है ऐ जोश-ए-बे-ख़ुदी रस्ता बता रहा हूँ हर इक रहनुमा को मैं दोनों ही कामयाब हुए हैं तलाश मैं ज़ात-ए-ख़ुदा मिली मुझे ज़ात-ए-ख़ुदा को मैं मिट्टी उठा के देखता हूँ राह-ए-शौक़ की भूला नहीं हूँ जोश-ए-तलब में फ़ना को मैं हस्ती फ़ना हुई तो हक़ीक़त ये खुल गई मैं ख़ुद बक़ा हूँ किस लिए ढूँडूँ बक़ा को मैं क्यूँकर मैं इस को दुश्मन-ए-हस्ती क़रार दूँ पाता हूँ मुद्दआ' का ज़रीया क़ज़ा को मैं क्यूँ उस की जुस्तुजू का हो सौदा मुझे 'रतन' मुझ से अगर जुदा हो तो ढूँडूँ ख़ुदा को मैं