ये ख़ुद को देखते रहने की है जो ख़ू मुझ में छुपा हुआ है कहीं वो शगुफ़्ता-रू मुझ में मह ओ नुजूम को तेरी जबीं से निस्बत दूँ अब इस क़दर भी नहीं आदत-ए-ग़ुलू मुझ में तग़य्युरात-ए-जहाँ दिल पे क्या असर करते है तेरी अब भी वही शक्ल हू-ब-हू मुझ में रफ़ूगरों ने अजब तब्अ-आज़माई की रही सिरे से न गुंजाइश-ए-रफ़ू मुझ में वो जिस के सामने मेरी ज़बाँ नहीं खुलती उसी के साथ तो होती है गुफ़्तुगू मुझ में ख़ुदा करे कि उसे दिल का रास्ता मिल जाए भटक रही है कोई चाप कू-ब-कू मुझ में उस एक ज़ोहरा-जबीं के तुफ़ैल जारी है तमाम ज़ोहरा-जबीनों की जुस्तुजू मुझ में नहीं पसंद मुझे शेर-ओ-शायरी करना कभी-कभार बस उठती है एक हू मुझ में मैं ज़िंदगी हूँ मुझे इस क़दर न चाह 'शुऊर' मुसाफ़िराना इक़ामत-गुज़ीं है तू मुझ में