ये किस मक़ाम पे पहुँचा है कारवान-ए-वफ़ा है एक ज़हर सा फैला हुआ फ़ज़ाओं में निशान-ए-राह की रखते तो हैं ख़बर लेकिन ज़बाँ पे ताले हैं और बेड़ियाँ हैं पाँव में फिरे हैं मुद्दतों इंसान की तलाश में हम वो शहर में नज़र आया हमें न गाँव में सर-ए-नियाज़ भी अपना कभी न ख़म होगा झलक ग़ुरूर की है आप की अदाओं में ज़मीं से ता-ब-फ़लक हर तरफ़ तअ'फ़्फ़ुन है गुलों की बू का पता क्या चले हवाओं में