ये किस ने दूर से आवाज़ दी है फ़ज़ाओं में अभी तक नग़्मगी है सितारे ढूँडते हैं उन का आँचल शमीम-ए-सुब्ह दामन चूमती है तअल्लुक़ है न अब तर्क-ए-तअल्लुक़ ख़ुदा जाने ये कैसी दुश्मनी है रिदा-ए-ज़ुल्फ़ में गुज़री थी इक शब मगर आँखों में अब तक नींद सी है मिरी तक़दीर में बल पड़ रहे हैं तिरी ज़ुल्फ़ों में शायद बरहमी है