ये किस ने तुम से ग़लत कहा मुझे कारवाँ की तलाश है जहाँ मैं हूँ तुम हो कोई न हो मुझे इस जहाँ की तलाश है लिए ज़ौक़-ए-सज्दा में दर-ब-दर फिरा मैं ने पाया नहीं मगर जहाँ अपने आप झुके जबीं इसी आस्ताँ की तलाश है न है वस्ल की कोई आरज़ू न तो हिज्र की कोई गुफ़्तुगू जो शिकार हो ग़म-ए-इश्क़ का उसी राज़-दाँ की तलाश है उसे दो ख़बर कि वो आशियाँ जो है सोज़ क़ल्ब से ज़ौ-फ़िशाँ ये सुना है मैं ने कि बर्क़ को मिरे आशियाँ की तलाश है मिरे शौक़-ए-दीद की आरज़ू नहीं चंद फूलों की जुस्तुजू मिरे रंग-ओ-बू के मज़ाक़ को किसी गुलिस्ताँ की तलाश है मिरे दिल में ग़म का जो ख़ार है मिरा दिल उसी पे निसार है जिसे मेरे दर्द का दर्द हो उसी मेहरबाँ की तलाश है किसी दिल में कोई मकीन है किसी दर पे कोई जबीन है जहाँ हो न कोई मिरे सिवा मुझे उस मकाँ की तलाश है