ये क्या गली है जहाँ डरते डरते जाते हैं गुज़रते भी नहीं लेकिन गुज़रते जाते हैं बस अब तो अगला सफ़र ख़ुश्कियों का आता है हमारी रात के दरिया उतरते जाते हैं जहाँ में कुछ नहीं होता किसी के करने से ये लोग फिर भी कोई काम करते जाते हैं ये कैसा हम को इशारा है पार उतरने का वो देखो लहरों में कुछ हाथ उभरते जाते हैं तमाम शहर तो आशोबा-ए-चश्म का है शिकार न जाने किस के लिए हम सँवरते जाते हैं अजब निज़ाम फ़ना ओ बक़ा का है कि जहाँ वो जी उठेंगे दोबारा जो मरते जाते हैं भरी हैं धुँद से सारे नगर की दहलीज़ें नज़र में जुगनू ही जुगनू उतरते जाते हैं