ये क्या कि इक जहाँ को करो वक़्फ़-ए-इज़्तिराब ये क्या कि एक दिल को शकेबा न कर सको ऐसा न हो ये दर्द बने दर्द-ए-ला-दवा ऐसा न हो कि तुम भी मुदावा न कर सको शायद तुम्हें भी चैन न आए मिरे बग़ैर शायद ये बात तुम भी गवारा न कर सको क्या जाने फिर सितम भी मयस्सर हो या न हो क्या जाने ये करम भी करो या न कर सको अल्लाह करे जहाँ को मिरी याद भूल जाए अल्लाह करे कि तुम कभी ऐसा न कर सको मेरे सिवा किसी की न हो तुम को जुस्तुजू मेरे सिवा किसी की तमन्ना न कर सको