ये क्या तज़ाद अब के मेरी दास्ताँ में है इक शाइबा-ए-ख़ंदा भी आह-ओ-फ़ुग़ाँ में है मुश्तरका हैं हमारे इलाज-ए-ग़म-ए-हयात जो मेरी आरती में है तेरी अज़ाँ में है कैसी हवा चली है कि जिस का कोई शुमार बाद-ए-बहार में है न ब'अद-ए-ख़िज़ाँ में है सुनते तो थे वसीअ' बहुत है फ़लक मगर वुसअ'त कहाँ इन आँखों सी इस आसमाँ में है सद-जल्वा रू-ब-रू है कहाँ पर रुके निगाह शोख़ी फुलाँ फुलाँ में नज़ाकत फुलाँ में है किस के लहू से करनी है सैराब नोक-ए-ख़ार इतनी तो सूझ-बूझ मिरे बाग़बाँ में है