ये क्या तुम्हारे जी में समाई तमाम-रात गालों पे रख के सोए कलाई तमाम-रात अख़्तर-शुमारियों में गुज़र ही गया जुनून माना के मुझ को नींद न आई तमाम देखे जो चश्म-ए-ज़ार कि सैलाब -हा-ए-ख़ूँ याद आए दस्त-ओ-पा-ए-हिनाई तमाम-रात बिस्तर की एक एक शिकन नोक-ए-ख़ार थी करवट बदलते नींद न आई तमाम-रात तस्बीह ले के हाथ में ज़ाहिद ने सुब्ह की याँ 'ताज' हम ने ईद मनाई तमाम-रात