ये क्या अंदाज़ हैं दस्त-ए-जुनून-ए-फ़ित्ना-सामाँ के उड़ाए जा रहे हैं चाक क्यूँ सहरा के दामाँ के अभी तुम ने नहीं देखे शरारे आह-ए-सोज़ाँ के अभी शो'ले कहाँ भड़के हैं दिल में दर्द-ए-पिन्हाँ के हवादिस की हवाओं ने घटा दी लौ मोहब्बत की दिए मद्धम से होते जा रहे हैं बज़्म-ए-जानाँ के वफ़ा के गुल ही वो गुल हैं कि जो दाइम महकते हैं वगरना ये कहाँ है बात फूलों में गुलिस्ताँ के जलाओ ख़ून-ए-दिल महफ़िल में जब कुछ रौशनी होगी अंधेरा हर तरफ़ छाया हुआ है बज़्म-ए-जानाँ के गुलों से ताज़गी फूलों से रंगत हो गई रुख़्सत सबा ने कान में क्या कह दिया फ़स्ल-ए-बहाराँ के उन्हें भी 'शम्स' की हालत पे रहम आ ही गया आख़िर न देखे जा सके पैहम मज़ालिम चर्ख़-ए-गर्दां के