ये मरहला है मिरे आज़माए जाने का मिला है हुक्म मुझे कश्तियाँ जलाने का बहाना ढूँड रहे हैं तमाम अहल-ए-सितम फ़सील-ए-शहर-ए-वफ़ा में नक़ब लगाने का बड़े सुकून से सोई है आज ख़िल्क़त-ए-शहर मना के जश्न चराग़ों की लौ बुझाने का हवा-ए-शहर ही जब हो गई ख़िलाफ़ मिरे उसे भी आ गया फ़न उँगलियाँ उठाने का मिरे वजूद में ज़िंदा है शौकत-ए-माज़ी मैं इक सुतून हूँ गुज़रे हुए ज़माने का रुकी हुई है लब-ए-ख़ुश्क पर हयात की बूँद फिर उस के बा'द तो मंज़र है डूब जाने का सफ़र की शाम मिरी ज़िंदगी के माथे पर बस इक सितारा तिरे नूर आस्ताने का