ये मौसम-ए-गुल गरचे तरब-ख़ेज़ बहुत है अहवाल-ए-गुल-ओ-लाला ग़म-अंगेज़ बहुत है ख़ुश दावत-ए-याराँ भी है यलग़ार-ए-अदू भी क्या कीजिए दिल का जो कम-आमेज़ बहुत है यूँ पीर-ए-मुग़ाँ शेख़-ए-हरम से हुए यक-जाँ मय-ख़ाने में कम-ज़र्फ़ी-ए-परहेज़ बहुत है इक गर्दन-ए-मख़्लूक़ जो हर हाल में ख़म है इक बाज़ू-ए-क़ातिल है कि ख़ूँ-रेज़ बहुत है क्यूँ मिशअल-ए-दिल 'फ़ैज़' छुपाओ तह-ए-दामाँ बुझ जाएगी यूँ भी कि हवा तेज़ बहुत है