ये मायूसी कहीं वज्ह-ए-सुकून-ए-दिल न बन जाए ग़म-ए-बे-हासिली ही इश्क़ का हासिल न बन जाए मदद ऐ जज़्ब-ए-दिल राह-ए-मोहब्बत सख़्त मुश्किल है ख़याल-ए-दूरी-ए-मंज़िल कहीं मंज़िल न बन जाए नहीं है दिल तो क्या पहलू में हल्की सी ख़लिश तो है ये हल्की सी ख़लिश ही रफ़्ता रफ़्ता दिल न बन जाए हुजूम-ए-शौक़ और राह-ए-मोहब्बत की बला-ख़ेज़ी कहीं पहला क़दम ही आख़िरी मंज़िल न बन जाए