ये मेरी बात ग़लत ढंग से सुनाते हैं कुछ और मैं ने कहा था ये कुछ बताते हैं तमाम उम्र कभी हम ने ये नहीं सोचा हम आए किस लिए और क्यों यहाँ से जाते हैं सफ़र ये चाह का है साज़-बाज़ राह का है ख़राब-ओ-ख़स्ता चलो अपने घर को जाते हैं चराग़ाँ उन के लिए है हमारी बर्बादी ब-नाम-ए-रौशनी ये बस्तियाँ जलाते हैं तुम्हारी आँखों ने दिल को असीर रखा है तुम्हारी आँखों में हम डूबते ही जाते हैं हमें सुनाते हैं वो दास्ताँ नई से नई फिर इस के बदले में हम शाइ'री सुनाते हैं तुम्हें बताएँ मियाँ होता क्या है बाज़ी में वो चाल चलता है तो सब ही हार जाते हैं हम उस से हाथ मिलाते हैं हाल पूछते हैं हम उस को जानते हैं ये उसे जताते हैं