ये न सोचो कल क्या हो कौन कहे इस पल क्या हो रोओ मगर न रोने दो ऐसी भी जल-थल क्या हो बहती नदी को बाँधे बाँध चुल्लू में हलचल क्या हो जीना आमने सामने का मौत में फिर कस-बल क्या हो हर छन हो जब आस लिए हर छन फिर निर्बल क्या हो काँच के टुकड़े चुने मगर तुझ सा वो बे-कल क्या हो रात ही गर चुप-चाप मिले सुब्ह भी फिर चंचल क्या हो आज ही आज की कहीं अगर किसी की भी कल कल क्या हो